इक्कीसवीं सदी के आरम्भिक वर्षों में रेडियो सुनने वालों की दुनिया कैसी है, इस दिशा में मेरी खिड़की तब खुली जब श्रोताओं का एक दल मुझे यह पत्रिका दे गया।
लगभग बीस वर्ष पहले, जब FM रेडियो उतने आम नहीं थे, श्रोता अपनी पसंद के गानों के लिए हमारे पीछे पड़े रहते थे। मुझे जल्द ही यह समझ में आ गया कि इनमें से किसी की भी दिलचस्पी उन गानों या FM पर पेश किये जाने वाले प्रोग्रामों में उतनी नहीं थी। उनका सिर्फ एक मकसद था कि किसी तरह उनके नाम रेडियो पर बोल दिए जाएं। इसके लिए वे दिन रात एक किये रहते थे।
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