If Depicting Dalit Life: Avoid a Crude Presentation

Every story has an internal visual and audio world that the director chooses to do his job in a structured manner. In this way, step by step, there is no break with the theatrical elements left behind or shown.

नाट्य प्रस्तुति 'मुर्दहिया' की समीक्षा 

कल (27 नवम्बर 2024) शाम युवा निर्देशक हरिशंकर रवि ने नयी दिल्ली के रविन्द्र भवन स्थित मेघदूत ओपन थियेटर में डॉक्टर तुलसी राम की आत्मकथा मुर्दहिया पर आधारित नाटक 'मुर्दहिया' नाम से ही मंचित किया।
जिसने भी मुर्दहिया नाम की किताब पढ़ी है वह सहमत होगा कि एक दलित पहचान के साथ आगे बढ़ने बल्कि रुके रहकर भी जीने की राह अकल्पनीय कठिनाइयों और चुनौतियों से भरी है और यह भी कि शेष समाज बिना आत्मालोचन और आत्ममंथन के नहीं रह सकता।
जिन्होंने यह किताब नहीं पढ़ी है उनके लिए यह मंचन एक अवसर हो सकता था कि वे मंचित नाटक से उस अहसास का हिस्सा बनें और सच का सामना करें।

Dr Tulsiram | Writer of Murdahiya | Image Courtesy Google

नाटक के सभी तत्व एक दूसरे से इस तरह विलग चलते रहे कि लगभग पौने दो घंटों में किसी एक क्षण को मर्मस्पर्शी पाना असंभव हो गया।


सबसे अधिक नाटक का ध्वनि पक्ष था जो दलित टोले मुर्दहिया की कैसी भी प्रतिनिधिक ध्वनि बन पाने में असमर्थ था बल्कि कहना चाहिए उस संसार के विरुद्ध कल्पित एक युद्ध जैसा था। प्रीरिकार्डेड सिंथेटिक म्यूजिक का जगह बेजगह बजना मुर्दहिया को किसी भी देश या काल से विस्थापित करता रहा। फिर चाहे भांति भांति की प्रॉपर्टीज हों, दृश्यों का नाटकीय गठन हो, अभिनेताओं का शब्दों के साथ व्यवहार हो या सकल प्रकाश प्रबंध – सब कुछ मुर्दहिया से निकलने की कोशिशों और उसमें जीने की शर्तों के बीच फंसे चरित्र की पहचान करा पाने में नाकाम रहे।


ऐसा मेरे लेखे इसलिए हुआ कि प्रस्तुति में कोई भी कथानक में वर्णित जीवन के साथ अपनी नजदीकी नहीं चाह रहा था। किसी ने उसे own नहीं किया।

Book cover

पूरी कहानी को लगभग २३ अभिनेताओं में पंक्तियों की शक्ल में बाँट दिया गया था और पंक्तियों को जोर शोर से बोलकर मुक्ति की सांस ले रहे अभिनेताओं के पास कुछ वस्तुओं को उठाकर कहीं चलने और नाटक का आभास कराने का काम भर रहा। कुछ अटकी भटकी सी गीत गवनई भी हुई।


कभी ऐसा भी लगा कि दृश्यों की कल्पना करने के बाद कहानी को उसमें सजाया गया। अभिनेताओं को जो कपड़े पहनने को दिए गए वो नीले और लाल ऐसे रंगों के थे जैसे कम्युनिस्ट और बसपा के मिलन/विछोह की ओर कोई इंगिति कर रहे हों। संवाद ऐसे बोले गए जैसे कोई शब्द साथ रहकर अपवित्र न कर जाए।

हर कहानी का एक आंतरिक दृश्य और श्रव्य जगत होता है जिसे चुनकर निर्देशक अपना काम सुगठित ढंग से करने की कोशिश करता है, कर सकता है। इस तरह कदम दर कदम बढ़ते हुए पीछे छूट गए या दिखाए गए नाट्य तत्त्वों से नाता नहीं तोड़ता।


हरिशंकर रवि का मैंने पहले कभी कोई काम नहीं देखा है। २०२२ के संगीत नाटक अकादमी उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार से पुरस्कृत रवि से उम्मीद की कोई वजह नहीं थी फिर भी जो देखा वह धैर्य की परीक्षा लेने वाला था।


नाटक किसी किताब के प्रति रुचि नहीं जगा सकता तो उसे अरुचि या उदासीनता जगाने का काम भी नहीं करना चाहिए। जीवन की बदहाली को प्रभावपूर्ण ढंग से दर्ज करने के लिए प्रस्तुति भी बदहाल हो यह जरूरी नहीं।
(फोटो में नाटक का एक पल है)

Irfan | 28 November 2024

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Syed Mohd Irfan

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Syed Mohd Irfan

Broadcast Journalist | Archivist | Music Buff | Founder Producer and Host of the longest running celebrity Talk Show Guftagoo on TV and Digital #TEDxSpeaker #Podcaster #CreativeWriter