Every narrator first embraces the poem, blending it with their own experiences and unique interpretation. This personal touch adds depth and makes their recitation truly special when performed aloud. Listen noted actor Kulbhushan Kharbanda here-
दोराहा
(अपनी बेटी ज़ोया के नाम)
ये जीवन इक राह नहीं
इक दोराहा है
पहला रस्ता बहुत सरल है
इसमें कोई मोड़ नहीं है
ये रस्ता इस दुनिया से बेजोड़ नहीं है
इस रस्ते पर मिलते हैं रिश्तों के बंधन
इस रस्ते पर चलनेवाले
कहने को सब सुख पाते हैं
लेकिन
टुकड़े टुकड़े होकर
सब रिश्तों में बँट जाते हैं
अपने पल्ले कुछ नहीं बचता
बचती है बेनाम सी उलझन
बचता है साँसों का ईंधन
जिसमें उनकी अपनी हर पहचान
और उनके सारे सपने
जल बुझते हैं
इस रस्ते पर चलनेवाले
ख़ुद को खोकर जग पाते हैं
ऊपर-ऊपर तो जीते हैं
अंदर-अंदर मर जाते हैं
दूसरा रस्ता बहुत कठिन है
इस रस्ते में कोई किसी के साथ नहीं है
कोई सहारा देनेवाला हाथ नहीं है
इस रस्ते में धूप है
कोई छाँव नहीं है
जहाँ तस्सली भीख में देदे कोई किसी को
इस रस्ते में ऐसा कोई गाँव नहीं है
ये उन लोगों का रस्ता है
जो ख़ुद अपने तक जाते हैं
अपने आपको जो पाते हैं
तुम इस रस्ते पर ही चलना
मुझे पता है
ये रस्ता आसान नहीं है
लेकिन मुझको ये ग़म भी है
तुमको अब तक
क्यूँ अपनी पहचान नहीं है
~जावेद अख़्तर
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