विश्वख्यात चित्रकार एमएफ़ हुसेन एक ज़मीनी इंसान थे। इंसानों से मिलने और उनके बारे में राय बनाने का उनका लंबा तजर्बा था। मेरी उनसे हुई लगभग सौ मुलाक़ातों के सौ रंग हैं और हर रंग उनमॆं छिपे बडप्पन की निशानदॆही करता है। मैंने उन्हें कभी उकताते हुए या तैश में आते हुए नहीं देखा। जीवन उनके लिये एक उत्सव था।
Caught on Tape : Making of MF Husain's Journey in Sound | Yusuf Begg in Business Standard, 2003
एम एफ़ हुसेन की आत्मकथा | एक चित्रमय लेखन
एमएफ़ हुसेन से मेरी पहली मुलाक़ात 23 फ़रवरी 2003 को दिल्ली में हुई। कुछ महीनों पहले उनकी आत्मकथा ‘एमएफ़ हुसेन की कहानी अपनी ज़ुबानी’ हिन्दी में छपकर आयी थी। कहीं इस किताब के कुछ टुकड़े मैंने पढ़े थे। दिल्ली मे एफ़एम गोल्ड तब नया-नया था और मैं इस पर तस्वीर नाम का प्रोग्राम किया करता था। प्रोग्राम तस्वीर की परिकल्पना के अनुसार हम-सब इसमें हिन्दुस्तान की नामी गिरामी हस्तियों की शोकेसिंग किया करते थे और बीच-बीच में गॊल्डेन एरा के फ़िल्मी गाने बजाया करते थे। मैं तब तक मुंशी नवलकिशोर, आग़ा हश्र कश्मीरी, भिखारी ठाकुर, गुलाब बाई, पंडिता रमाबाई और सालिम अली जैसे उन लोगों को प्रोग्राम में शामिल कर चुका था, जो बीती सदी के बहुत अनॊखे लोग थे।
हुसेन साहब अपनी शॊहरत के उरूज पर थे और शायद मैं यॆ सॊचकर उनपर देर से प्रॊग्राम करता कि उन्हें कौन नहीं जानता। लॆकिन आत्मकथा कॆ कुछ हिस्सॊं को पढ़कर मैंने पाया कि हुसेन साहब में छिपे लॆखक को मैं पहली बार दॆख पाया हूं। एक करिश्माई चित्रकार, एक अद्भुत लेखक भी है, ये मैं सुनने वालों को बताने के लिये मौक़ा तलाशने लगा।
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