हवलदार ने पूछा पूरा नाम क्या है? हमने कहा गिरिजा देवी। हवलदार बोला ऐसे तो बहुत गिरिजा देवी होगी इधर। हमने कहा वो बहुत फेमस हैं, बड़ी गायिका हैं। इस पर हवलदार एक छितरी मुस्कुराहट को हंसी की कटोरी में पछोरते हुए बोला- अच्छा अच्छा मने 'बाई' जी हैं?
हमने कितना दयनीय समाज बना डाला है इसकी एक और मिसाल देता हूँ। 1992 या 1993 के साल में मैं और हमारे साथी रामजी राय अपना झोला उठाकर बनारस पहुंचे। इस यात्रा के लिए हमारी प्रेरणा का स्रोत प्रख्यात तबला वादक पंडित गुदई महाराज का कहा वह वाक्य था कि 'हमें चाहिए लयदार समाज'
तालसम्राट ऐसा क्यों बोल गए और दूसरे बनारसी मूर्धन्य संगीतकार इस पर क्या राय रखते हैं ?ये सब सवाल लेकर और ये सोचकर कि जानें तो सही कि संगीतकारों का निजी परिवेश और उसमें उनकी उपस्थिति कैसी है, औघड़ भूमि पर औघड़ों की तरह उतर पड़े।
वो हमारी एक यादगार बनारस यात्रा थी।
आनंद कृष्ण राय जैसे कुछ कला पारखियों, सौन्दर्यविचारकों के अलावा हम उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, विदुषी एन राजम, पंडित किशन महाराज और पंडित छन्नूलाल मिश्र से भी मिले।
अब बारी थी गिरिजा देवी की। हमारे पास उन तक पहुँचने का ढंग का पता नहीं था। पुराने लोगों से उनके जिस मोहल्ले का नाम पता चला था वहां जाने पर पता चला कि वह किसी नई बन रही कालोनी में शिफ्ट हो गयी हैं जिसका नाम संजय नगर था।
हम संजय नगर पहुंचे लेकिन वो कोई ऐसा इलाका न था जहाँ कोई एक दूसरे को जानता हो। फिर भी पूछगछ की तो हमारी आशंका ही पुष्ट हुई। कोई उनके बारे में नहीं जानता था।
वैसे तो गिरिजा देवी की ख्याति ऐसी थी कि हमारे मुताबिक़, जैसे ही हम बनारस की धरती पर कदम रखते तो उनके बारे में हर कोई बताने को तैयार हो जाता।
हमने सोचा कॉलोनी के पोस्ट ऑफिस से पता कर लेते हैं, फिर गौर किया तो उस दिन इतवार था।
हारकर हम पास के पुलिस थाने पहुंचे। दरोगा खटिया पर लेटा था और उसके अधनंगे शरीर की मालिश एक हवलदार कर रहा था।
हमारे पहुँचने से उन लोगों को कोई खास फर्क नहीं पड़ा। हमने पूछा कि इधर गिरिजा देवी जी का घर कौन सा है, हमारे पास पता नहीं है इसलिए यहाँ आ गए हैं। हवलदार ने पूछा पूरा नाम क्या है? हमने कहा गिरिजा देवी। हवलदार बोला ऐसे तो बहुत गिरिजा देवी होगी इधर। हमने कहा वो बहुत फेमस हैं, बड़ी गायिका हैं। इस पर हवलदार एक छितरी मुस्कुराहट को हंसी की कटोरी में पछोरते हुए बोला- अच्छा अच्छा मने 'बाई' जी हैं?
इसके बाद उसने जो पता बताया उसकी डोर पकड़ कर हम गिरिजा देवी जी के घर पहुँच तो गए थे लेकिन वो कलकत्ता गयी हुई थीं। केयर टेकर ने हमारा समुचित सत्कार किया। खाना खिलाया।
इस तलाश के अंत में हमें बार-बार 'बाईजी' शब्द और हवलदार का अम्यूज्ड चेहरा याद आ रहा था।
पटना में 1988 से लेकर अभी पिछले साल दिल्ली तक में गिरिजा देवी जी को गाते बोलते देखना बहुत आश्वस्त करता रहा। उनके जाने से संगीत जगत का एक सरल फक्कड़ नाम विदा हुआ। क्या कोई पान का बीड़ा एक गाल में दबाकर गायकी में ऐसा सरस अनुभव पैदा कर सकेगा?
Girija Devi (8 May 1929 – 24 October 2017)
Irfan | 25 October 2017
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