Mahjoor (Peerzada Ghulam Ahmad) was a poetic legend in the valley of Kashmir, known for his revolutionary poetry of 20th Century, Unfortunately, not much documented and heard beyond the valley. Balraj Sahni was amazed with the popularity of the poet in the region and decided to document the poet's life on celluloid in mid 60s. He opted his son Parikshit to play the role of the poet in biopic, while he himself played father of Mahjoor. The music was given by Prem Dhawan with songs penned by Kaifi Azmi & Prem Dhawan (a few translations of Mahjoor's works). The bilingual film directed by Prabhat Mukherjee got delayed in making and release and could only be released in 1972. The song gives some insight, how Mahjoor was the poet & the VOICE of the folk, the common people of the valley with his images, and characters from common walks of life.
कश्मीर के एक बेहद महान लोक शायर हुए महजूर, जिनको शायर-ए-कश्मीर का खिताब भी दिया गया।
दरअसल महजूर, एक आम किसान थे लेकिन शायर थे। उनके गीत 30 और 40 के दशक में आवाम के गीत बने, पर उनको कोई नहीं जानता था।
अभिनेता और लेखक बलराज साहनी जिन दिनों रविन्द्रनाथ टैगोर की विश्वभारती के लिए रिपोर्टिंग और लेखन का काम करते थे, उन दिनों वह एक बार घूमते फिरते कश्मीर पहुंचे।
बलराज साहनी जिस रिक्शा में बैठे थे, रिक्शावाला एक गीत गुनगुना रहा था। उनको वह गीत बहुत पसंद आया। उन्होंने पूछा कि यह किसने लिखा है? रिक्शावाला बोला कि कोई पुराने दौर का महान शायर था, उसका गीत है। आगे जाने पर उन्होंने खेतों में काम करते हुए लोगों को भी वही गीत गाते सुना। लोगों को गीत का तो पता था लेकिन यह नहीं पता था ये किसने लिखा है। फिर आगे राह में खेलते बच्चों से भी बलराज साहनी ने वह गीत सुना, पता लगा पुरानी सदी के कोई महान शायर थे लेकिन कौन थे यह नहीं पता।
खैर अपने लिटरेरी सर्कल में पता करते-करते उन्हें पता चला कि एक किसान है जिसने यह गीत लिखे हैं, जबकि गानेवालों को भी नहीं पता था कि यह शायर उनके आसपास, उनके बीच का ही आदमी है। उसका नाम था महजूर।
बलराज साहनी ने महजूर के गीत पढ़ने शुरू किए, उनसे मिले और फिर विश्व भारती के लिए महजूर के ऊपर एक लंबा लेख लिखा। महजूर के गीतों में कश्मीर का सौंदर्य था, रोमांस था लेकिन वह आम लोगों की बात भी कहते थे। किसानों की, काम करते हुए मजदूरों की, घर में काम करती महिलाओं की इमेजेज उनकी रचनाओं में आतीं। उनकी ये इमेजेज बहुत इंटरेस्टिंग भी होती थीं और कई बार विद्रोही भी।
बलराज साहनी ने जब महजूर को दुनिया से इंट्रोड्यूस कराया उसके बाद उनकी ख्याति एकदम से बढ़ी महजूर शायरी की मुख्य धारा में आ गए। विभाजन के बाद महजूर, उस कश्मीर में रहे जो पाकिस्तान ऑक्यूपाइड था, और वह उसकी पैरोकारी करते रहे और उन्होंने शेख अब्दुल्ला की बहुत मुखालफत भी की, इसलिए भारत में उन्हें बहुत ज्यादा मान सम्मान नहीं दिया गया। लेकिन बहुत गजब की शायरी है उनकी।
खैर बात यहां खत्म नहीं हो जाती, 60 के दशक में बलराज साहनी ने जब बतौर प्रोड्यूसर डायरेक्टर अपनी पहली फिल्म बनानी शुरू की तो जो कहानी उन्होंने अपनी फिल्म के लिए चुनी वह थी, अपने दोस्त महजूर की जिंदगी पर।
हालांकि बलराज साहनी उससे पहले एक फिल्म डायरेक्ट कर चुके थे पार्टीशन के समय पर 'लाल बत्ती', जो बहुत कंट्रोवर्शियल रही और रिलीज नहीं हो पाई और गायब हो गई। फिर उन्होंने 1967-68 के आसपास,शायर-ए-कश्मीर महजूर के नाम से फिल्म शुरू की लेकिन यहां सिर्फ एक गलती कर ली कि उन्होंने महजूर की भूमिका के लिए खुद की बजाय अपने बेटे परीक्षित साहनी को चुना। परीक्षित ने जैसे तैसे वह फिल्म की, और शायद उस वजह से वह उतनी अच्छी बन नहीं पाई, क्योंकि परीक्षित का डेब्यू था और अभिनय में वह कच्चे थे। शायद बलराज जी वह रोल खुद करते तो बेहतर होता।
खैर फिल्म बनी और महजूर के क्रांतिकारी विचारों की वजह से काफी कंट्रोवर्शियल हुई। इतनी कि उस समय के कश्मीर के हुक्मरान शेख अब्दुल्ला (फारुख के पिता), ने फिल्म को न सिर्फ बैन कर दिया, बल्कि प्रिंट जब्त कर के मिटा भी दिए। तो इस तरह बलराज साहनी एक शापित निर्देशक साबित हुए।
झूमर है मोतियों का
माथे का ये पसीना
करती है रश्क़ तुझपे
महलों की हर हसीना
सब की मुराद लेकिन,
क़िस्मत में नामुरादी
ओ खेतों की शहज़ादी,
कुरबान तुझपे वादी
फिल्म के संगीत का रिकॉर्ड रिलीज होचुका था तो गीत बचगए (दो-तीन गीत मेरे यूट्यूब पर हैं) फिल्म अब कहीं पर भी उपलब्ध नहीं होती, मैं कश्मीर में भी ढूंढकर आया हूं, महजूर के काव्य संकलन भी मुश्किल से मिलते हैं हालांकि उनका ट्रांसलेशन मिल जाता है। उनको पढ़िए और पाइये कि उनमें अवाम के, लोक के रंग कितने खूबसूरत हैं !
The original text is very difficult to understand as it is Kashmiri. This translation will give you a good idea of his revolutionary poetry
Pavan Jha | 29 May 2024
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