धीरे चलो | चंद्रभूषण की कविता recited by Irfan
धीरे चलोइसलिए नहीं कि बाकी सभी तेज-तेज चल रहे हैंऔर धीरे चलकर तुम सबसे अलग दिखोगेइसलिए तो और भी नहीं किभागते-भागते थक गए हो और थोड़ा सुस्ता लेना चाहते होधीरे चलोइसलिए कि धीरे चलकर ही काम की जगहों तक पहुंच पाओगेकई चीजें, कई जगहें तेज चलने पर दिखतीं ही नहींबहुत सारी मंजिलें पार कर जाने के बादलगता है कि जहां पहुंचना था, वह कहीं पीछे छूट चुका हैधीरे चलोकि अभी तो यह तेज चलने से ज्यादा मुश्किल हैजरा सा कदम रोकते ही लुढ़क जाने जैसा एहसास होता हैपैरों तले कुचल जाना, अंधेरे में खो जाना, गुमनामी में सो जानाइन सबमें उससे बुरा क्या है,
Write a comment ...