Description
"अचानक एक दिन शूटिंग का बुलावा आ गया। जीवन में मेरी पहली शूटिंग। शाम के सात बजे का कारदार स्टूडियो पहुंचना था। IPTA की एक मीटिंग बीच में ही छोड़कर मैंने ठीक समय पर चर्नी रोड स्टेशन से गाड़ी पकड़ी। शूटिंग शब्द सुनकर दोस्तों-साथियों पर ऐसी प्रतिक्रिया हुई जैसे बिजली के तार को हाथ लग जाए। मैं एक क्षण में उनके लिए प्यार के बजाय ईर्ष्या का पात्र बन गया। और उस दिन से लेकर आज तक मैंने अपने इर्द-गिर्द घर में भी और घर के बाहर भी हमेशा यही प्रतिक्रिया देखी है। हर किसी की नजर में शूटिंग एक बड़ी अलौकिक चीज है। वह आदमी को दूसरे लोगों से अलग और ऊंचा बना देती है। शूटिंग कर रहे कलाकार का सिंहासन अटल लगता है, और जो न कर रहा हो, उसका डगमगाता हुआ। अगर कोई यूं ही पूछ बैठे 'आज आपकी शूटिंग नहीं है?' तो बड़े से बड़ा अभिनेता भी घबरा जाता है, जैसे उससे कोई कुसूर हो गया हो। इसका कारण यह है कि इस सवाल की कहीं दूर, एक खतरे की घंटी बँधी हुई है जिसकी आवाज फिल्म स्टार के कानों को अच्छी नहीं लगती।"
~ बलराज साहनी, मेरी फ़िल्मी आत्मकथा
(बलराज साहनी की किताब 'मेरी फ़िल्मी आत्मकथा' सबसे पहले अमृत राय द्वारा सम्पादित पत्रिका 'नई कहानियां' में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुई।
बलराज जी के जीवन काल में ही यह पंजाबी की प्रसिद्ध पत्रिका प्रीतलड़ी में भी यह धारावाहिक ढंग से छपी।
1974 में जब यह किताब की शक्ल में आई तो फिल्म प्रेमियों और सामान्य पाठकों ने इसे हाथों हाथ लिया।)
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