Description
This series was not possible without your heartfelt support. I am grateful to you for considering it of some worth and giving all your love in this hate driven madness.
"एक बात और, फिल्म लाइन में सभी एक दूसरे का बुरा सोचते हैं। ऊपर से तो वे बेहद प्यार मोहब्बत से पेश आते हैं, पर मन में दूसरे की पूरी और हमेशा के लिए तबाही की कामना करते हैं। जो व्यक्ति उनकी नजर से दूर हो जाए, वे समझते हैं कि वह खत्म हो गया। इससे उन्हें खुशी और तसल्ली मिलती है। फिल्मों में सफल होने की एक शर्त यह भी है कि दोस्तों-साथियों को यह खुशी और तसल्ली प्राप्त ना होने दी जाए।"
~ बलराज साहनी, मेरी फ़िल्मी आत्मकथा
(प्रसिद्ध अभिनेता और लेखक बलराज साहनी ने अपनी किताब 'मेरी फ़िल्मी आत्मकथा' अपनी मृत्यु से एक साल पहले यानी 1972 पूरी की थी। यह सबसे पहले अमृत राय द्वारा सम्पादित पत्रिका 'नई कहानियां' में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुई। फिर उनके जीवन काल में ही यह पंजाबी की प्रसिद्ध पत्रिका प्रीतलड़ी में भी यह धारावाहिक ढंग से छपी।
1974 में जब यह किताब की शक्ल में आई तो फिल्म प्रेमियों और सामान्य पाठकों ने इसे हाथों हाथ लिया।)

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