Description
This series was not possible without your heartfelt support. I am grateful to you for considering it of some worth and giving all your love in this hate driven madness.
"कामयाबी के बाद मेरी किस्मत में भी अपनी आत्मा के साथ समझौता करना ही लिखा था। बिमल रॉय का व्यंग्य सही था। मगर समय से पहले किया गया था।
मैंने चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा बड़े शौक से पढ़ी है। मुझे लगा कि जहां तक वह महान कलाकार अपनी गरीबी और गुमनामी के दिनों का वर्णन करता है, उसकी जिंदगी की कहानी बेहद दिलचस्प बनी रहती है। पर कामयाबी के दौर की शुरुआत होते ही वह फीकी पड़ने लगती है। तब चैप्लिन व्यक्तिगत समस्याओं और लॉर्ड-लेडियों की दोस्ती में खोया हुआ प्रतीत होता है, जैसे आत्मिक रूप से छोटा होता जा रहा हो, हालांकि उस दौर में उसने ही संसार को 'गोल्डरश' 'मॉडर्न टाइम्स' ग्रेट डिक्टेटर' और 'मोस्यू वर्द' जैसी महान फ़िल्में दीं। अजीब सा विरोधाभास है यह।
कहां राजा भोज, कहां गंगवा तेली ! कहां चार्ली चैप्लिन, कहां मेरे जैसा अदना आदमी। जितना नगण्य मैं, उतनी मेरी सफलता नगण्य। फिर भी मैं यह कहने का साहस जरूर करूंगा कि कलाकार की जिंदगी विरोधाभासों और विषमताओं से भरी होती है। उसके चरित्र की कमजोरियां और सीमाएं भी कई बार उसके कलात्मक विकास का स्रोत बन जाती हैं।
अब तक जितनी फिल्मों में मैंने काम किया है उनके नाम गिनाते आया हूं। 10 सालों में 10 फिल्में। पर अगले, यानी कामयाबी के 18 सालों में 100 से ज्यादा फिल्मों में काम कर गया। कश्ती ठहरे हुए पानी में सपने की तरह थिरकती चली गई। निर्माता और नोटों के बंडल हवा-पानी की तरह हो गए, जिन्हें इस्तेमाल करता हुआ आदमी कभी सोचता भी नहीं है।"
~बलराज साहनी, मेरी फिल्मी आत्मकथा
(प्रसिद्ध अभिनेता और लेखक बलराज साहनी ने अपनी किताब 'मेरी फ़िल्मी आत्मकथा' अपनी मृत्यु से एक साल पहले यानी 1972 पूरी की थी। यह सबसे पहले अमृत राय द्वारा सम्पादित पत्रिका 'नई कहानियां' में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुई। फिर उनके जीवन काल में ही यह पंजाबी की प्रसिद्ध पत्रिका प्रीतलड़ी में भी यह धारावाहिक ढंग से छपी।
1974 में जब यह किताब की शक्ल में आई तो फिल्म प्रेमियों और सामान्य पाठकों ने इसे हाथों हाथ लिया।)

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