मैं पांच मे पढ़ता था. माट्साब एक अच्छर पूछने लगे.नहीं बता पाया तो मारने लगे. मैं रोने लगा फिर भी वो मारते रहे. मैने उनका फोता पकड़ कर इतनी जोर से दबाया कि वो चिल्लाने लगे और बेहोस हो गये. सब मास्टर आ गये और मैं भागा. भागते-भागते मैं नदिया पर पहुंचा अपने ये उंगली धोई. बांधने के लिये कपड़ा भी नहीं था. पता नहीं ये उंगली टूट गयी है या बची है?"
मुझे हंसी आ गयी. अब वो मुझसे खुल चुका था और शायद उसे लग गया था कि मैं उसे कोई नैतिक उपदेश नहीं दूंगा.हंसते-हंसते मैं पंजों के बल वहीं बैठ गया. और समझने लगा कि लड़का बेसिकली भगोड़ा और आवारा नहीं हैं. यह स्कूल मुक्त दुनिया में उसका छठा-सातवां दिन था और वो अपनी दोपहर की भूख के बावजूद हंस सकता था.
कला व यथार्थ के बीच बेचैन गुज़रते मृणाल दा
अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी के आह्वान पर मृणाल सेन और सलिल चौधरी काकद्वीप में चल रहे किसानों के तेभागा आंदोलन में भी सक्रिय रहे जिसने उनकी कला में गहरे मानवीय स्पर्श की बुनियाद रखी।
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