मैं पांच मे पढ़ता था. माट्साब एक अच्छर पूछने लगे.नहीं बता पाया तो मारने लगे. मैं रोने लगा फिर भी वो मारते रहे. मैने उनका फोता पकड़ कर इतनी जोर से दबाया कि वो चिल्लाने लगे और बेहोस हो गये. सब मास्टर आ गये और मैं भागा. भागते-भागते मैं नदिया पर पहुंचा अपने ये उंगली धोई. बांधने के लिये कपड़ा भी नहीं था. पता नहीं ये उंगली टूट गयी है या बची है?"
मुझे हंसी आ गयी. अब वो मुझसे खुल चुका था और शायद उसे लग गया था कि मैं उसे कोई नैतिक उपदेश नहीं दूंगा.हंसते-हंसते मैं पंजों के बल वहीं बैठ गया. और समझने लगा कि लड़का बेसिकली भगोड़ा और आवारा नहीं हैं. यह स्कूल मुक्त दुनिया में उसका छठा-सातवां दिन था और वो अपनी दोपहर की भूख के बावजूद हंस सकता था.
Allahabad after 38 years
This unforgettable visit to Allahabad became a reality thanks to Tigmanshu Dhulia’s invitation to the three-day (20, 21 and 22 December 2024) event, Bazm-e-Virasat.
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